रायपुर. मोदी सरकार द्वारा बनाये गए कृषि कानूनों के खिलाफ छत्तीसगढ़ के बीस से ज्यादा किसान संगठनों ने 25 सितम्बर को 'छत्तीसगढ़ बंद' का आह्वान किया है और जनता के सभी तबकों, राजनैतिक दलों और संगठनों से खेती-किसानी, खाद्यान्न आत्मनिर्भरता और देश की संप्रभुता को बचाने के लिए इस आह्वान का पुरजोर समर्थन करने की अपील की है।
उल्लेखनीय है कि 300 से ज्यादा किसान संगठनों से मिलकर बनी अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने इन कृषि विरोधी कानूनों को पारित किए जाने के खिलाफ 25 सितम्बर को 'भारत बंद' का आह्वान किया है। किसान संघर्ष समन्वय समिति के अनुसार इन कानूनों से भारतीय किसान देशी-विदेशी कॉरपोरेटों के गुलाम बनकर रह जाएंगे। उनका माल सस्ते में लूटा जाएगा और महंगा-से-महंगा बेचा जाएगा। कुल नतीजा यह होगा कि किसान बर्बाद हो जाएंगे और उनके हाथों से जमीन निकल जायेगी। आम जनता भी अभूतपूर्व महंगाई की मार का शिकार होगी।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि जिस तरीके से राज्यसभा में विपक्ष के बहुमत को कुचलते हुए इस कानून को पारित किया गया है, उससे स्पष्ट है कि अपने कॉर्पोरेट मालिकों की चाकरी करते हुए इस सरकार को संसदीय जनतंत्र को कुचलने में भी शर्म नहीं आ रही है। ये कानून कॉरपोरेटों के मुनाफों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की वर्तमान व्यवस्था को ध्वस्त करते है। आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से अनाज को बाहर करने से जमाखोरी, कालाबाजारी, मुनाफाखोरी और महंगाई बढ़ेगी। वास्तव में इन कानूनों के
जरिये सरकार कृषि के क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पाना चाहती है। किसान सभा नेता ने बताया कि किसानों के व्यापक हित में प्रदेश के किसानों और आदिवासियों के 20 से ज्यादा संगठन फिर एकजुट हुए हैं और 25 सितम्बर को 'छत्तीसगढ़ बंद' के आह्वान के साथ ही पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का फैसला लिया गया है।
एक संयुक्त बयान में इन किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा है कि उत्पादन के क्षेत्र में ठेका कृषि लाने से किसान अपनी ही जमीन पर गुलाम हो जाएगा और देश की आवश्यकता के अनुसार और अपनी मर्जी से फसल लगाने के अधिकार से वंचित हो जाएगा। इसी प्रकार कृषि व्यापार के क्षेत्र में मंडी कानून के निष्प्रभावी होने और निजी मंडियों के खुलने से वह समर्थन मूल्य से वंचित हो जाएगा। इस बात का भी इन कानूनों में प्रावधान किया गया है कि कॉर्पोरेट कंपनियां जिस मूल्य को देने का किसान को वादा कर रही है, बाजार में भाव गिरने पर वह उस मूल्य को देने या किसान की फसल खरीदने को बाध्य नहीं होगी -- यानी जोखिम किसान का और मुनाफा कार्पोरेटों का! कुल मिलाकर ये तीनों कानून किसान विरोधी है। इससे किसान आत्महत्याओं में और ज्यादा वृद्धि होगी।
छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान करने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि संगठन प्रमुख हैं। उन्होंने कहा है कि देश की जनता इन कानूनों पर अमल नहीं होने देगी और अब संसद के अंदर लड़ी जाने वाली लड़ाई सड़कों पर लड़ी जाएगी। 25 सितम्बर को छत्तीसगढ़ के किसान सड़कों पर उतरकर किसान विरोधी इन काले कानूनों का विरोध करेंगे। छत्तीसगढ़ में वामपंथी दलों और जन संगठनों ने इस बंद को अपना समर्थन देने की घोषणा की है।
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